लंदन। कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए व्यापकर स्तर पर टेस्टिंग हो रही है। इनमें से कई ऐसे हैं जिनके टेस्ट के नतीजे निवेटिव आ रहे हैं, जबकि अब वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि इनमें से 30 प्रतिशत नतीजे गलत हो सकते हैं। यानी कि जिन्हें वायरस मुक्त घोषित किया गया है उनपर खतरा बरकरार है। खराब स्वैबिंग से गलत नतीजेऐसे लोग जिन्हें यह कहा गया है कि उनमें वायरस का संक्रमण नहीं पाया गया है, वे वायरस फैला सकते हैं अगर उन्हें लगता है कि वह अब काम पर वापस जा सकते हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि इसकी वजह गलत स्वैबिंग हो सकती है। स्वास्थ्यकर्मियों को संभावित मरीजों से स्वैब लेने की ट्रेनिंग दी जाती है, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि उनसे गलतियां हो सकती हैं। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का कहना है कि टेस्ट के नतीजों पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। ब्रिटेन में कोरोना से अब तक 34 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वैज्ञानिकों की दलील है कि अगर किसी व्यक्ति के नतीजे निगेटिव भी आए हैं तो उसके लक्षणों की अनदेखी नहीं की जा सकती और उन्हें सेल्फ आइसोलेशन में रहने को कहना चाहिए। इसके साथ ही मंत्रियों को आगाह किया गया है कि देश में एक चौथाई मामलों की अनदेखी हो जाएगी, क्योंकि लक्षणों की जो सूची बनाई गई है उसमें कई बात शामिल नहीं हैं। ब्रिटेन के स्वास्थ्य प्रमुखों का कहना है कि मांसपेशियों में दर्द, स्वाद महसूस न होना, सिरदर्द के लक्षणों को कोरोना में शामिल नहीं किया है जो संकट पैदा कर सकता है। ब्रिटेन में अब तक करीब 25 लाख लोगों का टेस्ट किया गया है। इनमें से 2.40 लाख लोग संक्रमित पाए गए हैं।