मुम्बई । चीनी मोबाइल कंपनी वीवो अब इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की प्रायोजक नहीं होगी। देशभर में उसके खिलाफ बने माहौल को देखते हुए मंगलवार को वीवो ने आईपीएल का प्रायोजन नहीं करने का फैसला किया। भारत और चीन के बीच सीमा पर जारी तनाव को देखते हुए चीनी कंपनियों का भारी विरोध हो रहा है। स्वदेशी जागरण मंच सहित कई संगठनों ने बीसीसीआई से कहा था कि वह आईपीएल से वीवो को बाहर कर दे। वहीं बीसीसीआई और आईपीएल गवर्निंग काउंसिल ने सोमवार को अपनी एक बैठक कर वीवो को प्रायोजक बनाये रखा था। जिसके बाद देश भर में वीवो के खिलाफ विरोध तेज हो गया था। इस मामले में व्यापारी संघ ने गृहमंत्री अमित शाह तक से हस्तक्षेप कर वीवी को करार से हटाये जाने के लिए पत्र लिखा था।
आईपीएल का 13वां सत्र यूएई में अगले महीने 19 सितंबर से शुरू होगा। इसका फाइनल मैच 10 नवंबर को खेला जाएगा। पहले यह लीग मार्च में भारत में ही खेली जानी थी, पर कोरोना महामार के कारण इसे अब यूएई में रखा गया है।
वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी चीनी मोबाइल कंपनी के प्रायोजक बने रहने पर कड़ी आपत्ति जतायी थी। इसके एक दिन बाद ही वीवो के स्पॉन्सरशिप से हटने की खबर सामने आई।
इससे पहले आईपीएल गवर्निंग काउंसिल ने चीनी मोबाइल कंपनी को प्रायोजक बनाये रखने का फैसला किया था जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने बीसीसीआई पर जमकर नाराजगी जतायी थी। जून में लद्दाख में हुई भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने चीनी सामान का बहिष्कार करने की बात भी कही थी। बीसीसीआई ने भी तब करार की समीक्षा का वादा किया था पर इसके बाद भी आईपीएल के लिए उसने वीवो का करार बरकरार रखा। बीसीसीआई के एक अधिकारी ने कहा था, ' कोरोना महामारी के हालातों को देखते हुए इतने कम समय में बोर्ड के लिए नया प्रायोजक ढूंढना मुश्किल होगा।'
वहीं स्वदेशी जागरण मंच ने बीसीसीआई के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि वीवो को प्रयोजक बनाए रखना शहीद सैनिकों का अपमान करने की तरह है।
वीवो इंडिया ने 2017 में आईपीएल टाइटल प्रायोजन अधिकार साल 2022 तक के लिए 2199 करोड़ रुपये में हासिल किए थे। बीसीसीआई को इस करार के तहत वीवो से सालाना 440 करोड़ रुपये मिलते हैं।