नई दिल्ली । पूर्वी लद्दाख में सामान्य स्थिति बहाल करने के मकसद से भारत-चीन के बीच सैन्य स्तर की 5वें दौर की वार्ता की उपयोगिता व प्रासंगिकता को लेकर गंभीर संशय है। चीनी राजदूत सुन वीडॉन्ग के पैंगोंग झील संबंधी बयान को कूटनीतिक व सामरिक स्तर पर जांचा परखा जा रहा है। सरकार के नीतिकारों का मानना है कि राजदूत सुन वीडॉन्ग ने शी जिनपिंग और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की उस मंशा को साफ किया है कि चीनी सेना पैंगोंग झील से नहीं हटने जा रही। पूर्व सेना प्रमुख जनरल (रिटा.) वेद मलिक ने शुक्रवार को कहा कि चीनी राजदूत के बयान ने एलएसी पर कोर कमांडर बातचीत से किसी प्रगति की उम्मीद को लगभग खत्म कर दिया है। उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि अगर चीन पैंगोंग से नहीं हटने पर वाकई आमादा है तो भारत के सामने दो विकल्प होंगे। पहला, सेना चीन के अगले पैंतरे को रोकने को वहीं जमी रहे। दूसरा, अपनी जमीन से चीनियों को भगाने के लिए जंग का रास्ता अपनाए।
जल्द मिल सकते हैं डोभाल और वांग
हालांकि, इतना तय है कि गोगरा के पैट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी)17 और 17ए से भी चीन पूरी तरह नहीं हटा है। उधर, डेपसांग लगातार तनावग्रस्त बना हुआ है। सूत्रों ने बताया कि विशेष प्रतिनिधि एनएसए अजीत डोभाल व उनके चीनी समकक्ष वांग यी इस मसले पर जल्द बात करने वाले हैं। उम्मीद की जा रही है कि इससे रास्ता निकाल लिया जाएगा। हालांकि, दोनों पक्ष हालात को जंग की स्थिति तक नहीं ले जाना चाहते।
चीनी राजदूत ने क्या कहा था
राजदूत वीडॉन्ग ने इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के मंच पर कहा है कि पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर चीन की पारंपरिक सीमा रेखा एलएसी के मुताबिक है। लिहाजा ऐसी कोई बात नहीं है कि चीन ने वहां की जमीन पर अपनी नई दावेदारी दिखाई है। सूत्रों ने बताया कि राजदूत का कहना है कि चीन फिंगर पॉइंट 4 को अपनी सीमा मानता है, जबकि अब तक फिंगर पॉइंट 8 तक भारत के हिस्से में था। चीनी सेना इन्हीं पॉइंट 4 से 8 के बीच के करीब 8 वर्ग किमी जमीन पर बैठा है। रणनीतिकारों के मुताबिक चीन पैंगोंग पर अपनी जिद पर अड़ा रहा तो तनाव किसी भी हद तक बढ़ सकता है।