काबुल । अमेरिकी सेना के जाने के बाद अब अफगानिस्तान में नई सरकार बनाने की कवायद जारी है। इस बीच तालिबान को मदद करने के लिए पाकिस्तान और चीन ने तालिबान को तकनीकी स्तर पर मदद के लिए अपने आईटी इंजीनियर्स और टेक्नोक्रेट को अफगानिस्तान भेजा है। कहा जा रहा है कि ये इंजीनियर्स तालिबान के लोगों व्हाट्सएप और दूसरे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करने के लिए तकनीक की ट्रेनिंग देंगे। ये इंजीनियर्स काबुल एयरपोर्ट पर भी तालिबान को तकनीकी मदद देंगे। तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद काबुल हवाई अड्डे को चलाने के लिए तुर्की तथा कतर से तकनीकी मदद मांगी है। तुर्की काफी हद तक इसके लिए राजी हो गया था और दोनों की बात भी इस मुद्दे पर चल रही थी। तुर्की का कहना है कि कमर्शियल फ्लाइट शुरू करने के लिए अभी काबुल एयरपोर्ट के हालात ठीक नहीं हैं।
इस बीच पाकिस्तान सरकार ने तालिबान के साथ संबंधों की बात कबूल कर ली है। देश के आंतरिक मंत्री शेख राशीद ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि पाकिस्तान तालिबान का ‘संरक्षक’ रहा है। साथ ही उन्होंने बताया कि इमरान खान की अगुवाई वाली सरकार ने लंबे समय तक तालिबान के विद्रोहियों के लिए काफी कुछ किया है। सरकार ने माना है कि इस्लामाबाद ने तालिबान को रहने की जगह और शिक्षा मुहैया कराई। काबुल में नई सरकार के गठन में पाकिस्तान बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। उधर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव पारित करने पर हमारा खुद को बधाई देना जल्दबाजी है। उन्होंने आगाह किया कि चीन, पाकिस्तान और तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान का संभावित गठजोड़ चिंता का विषय है।