भोपाल । मप्र में भले ही फिलहाल नगरीय निकाय चुनाव फरवरी तक के लिए टाल दिए गए हैं, लेकिन भाजपा और कांग्रेस की तैयारियां चल रही हैं। दोनों पार्टियां अपनी विधायकों के भरोसे निकाय चुनाव लड़ेंगी। उन्हें उम्मीद है कि विधायक अपने क्षेत्र में पार्टी के प्रत्याशी को जीत दिलान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए विधायकों को निकाय चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है।
कोरोना संक्रमण के कारण नगरीय निकाय चुनाव भले ही फरवरी 2021 के बाद होना तय हो गया हो, लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारियों में कमी नहीं आई है। कांग्रेस नेता भले ही कोरोना संक्रमण के बीच अन्य आयोजनों और नगरीय निकाय चुनाव टालने पर सवाल उठाते हों, लेकिन हकीकत यह है कि वे भी इसे तैयारी के लिए समय मिलने के तौर पर देखते हैं। विधानसभा स्तर पर असहयोग और गुटबाजी का असर कम किया जा सके, इसलिए इस बार भाजपा और कांग्रेस ने निकाय चुनाव की जिम्मेदारी विधायकों को सौंपी है।
पिछले कुछ दिनों में भाजपा और कांग्रेस के पार्टी स्तर के हर कार्यक्रम में विधायकों को नगरीय निकाय चुनाव के लिए तैयार रहने को कहा गया है। पहले के चुनावों में भी विधायकों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती थी, लेकिन इस बार ज्यादा जोर विधायकों के सक्रिय रहने पर दिया जा रहा है। भाजपा की ओर से आयोजित कार्यक्रमों में विधायकों को इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सोमवार को विधायकों से व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात की। उनकी समस्याएं सुनीं और क्षेत्र के विकास कार्यों में तेजी लाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए। उधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ अपने विधायकों से कह चुके हैं कि यह अगले विधानसभा चुनाव से पहले शक्ति प्रदर्शन का अवसर है। निकाय चुनावों के लिए प्रत्याशी चयन में विधायकों की रायशुमारी को महत्व देने की बात भी संगठन स्तर पर कही गई है।
असहयोग की आशंका होगी खत्म
विधायकों की जिम्मेदारी तय करने से माना जा रहा है कि विधानसभा स्तर पर होने वाली गुटबाजी खत्म होगी। प्रत्याशी तय करने में विधायक की सहमति होने से जीत के लिए दमखम से मैदान में उतरा जाएगा। निकाय चुनाव में जीत या हार की स्थिति का असर पार्टी स्तर पर विधायकों की साख पर भी पड़ेगा, इसलिए वे अधिक सक्रिय रहेंगे।