दुशांबे । शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के राष्ट्रप्रमुखों की बैठक में अफगानिस्तान में काबिज निकुंश तालिबान का मुद्दा छाया रहा। इस सम्मेलन के समापन के बाद जारी संयुक्त घोषणापत्र में एससीओ के सदस्य देशों ने तालिबान के सामने अफगानिस्तान को लेकर कई मांगे रखी हैं। एससीओ के नेताओं ने कहा कि अफगानिस्तान को आतंकवाद, युद्ध और मादक पदार्थों से मुक्त स्वतंत्र, लोकतांत्रिक एवं शांतिपूर्ण देश बनना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार का होना महत्वपूर्ण है जिसमें सभी जातीय, धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों के प्रतिनिधि शामिल हों। एससीओ नेताओं ने उल्लेख किया कि एससीओ क्षेत्र में सुरक्षा एवं स्थिरता का संरक्षण एवं मजबूती के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारकों में से एक यह है कि अफगानिस्तान में स्थिति का जल्द समाधान हो। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान एक स्वतंत्र, तटस्थ, एकीकृत, लोकातांत्रिक एवं शांतिपूर्ण देश के रूप में उभरना चाहिए जो आतंकवाद, युद्ध और मादक पदार्थों से मुक्त हो।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद से संबंधित काली सूची में शामिल विद्रोही संगठन के कम से कम 14 नेताओं के अफगानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार में शामिल होने के संदर्भ में संयुक्त घोषणा में कहा गया कि सदस्य देशों का मानना है कि अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार का होना महत्वपूर्ण है जिसमें सभी जातीय, धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों के प्रतिनिधि शामिल हों। अगस्त के मध्य में अफगानिस्तान पर कब्जा करनेवाले तालिबान ने अफगानिस्तान के जटिल जातीय ढांचे का प्रतिनिधित्व करनेवाली समावेशी सरकार बनाने का वादा किया था, लेकिन उसकी अंतरिम सरकार में न तो हजारा समुदाय का कोई प्रतिनिधि शामिल है और न ही किसी महिला को शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम से दिखा है कि क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौतियों के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा ही है।
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हुए सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सूफीवाद और मध्य एशिया की सांस्कृतिक विरासत के बारे में बात की और कहा कि एससीओ को क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत के आधार पर कट्टरपंथ एवं चरमपंथ से लड़ने के लिए एक साझा ढांचा विकसित करना चाहिए। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने संबोधन में तालिबान का नाम लिये बगैर कहा कि विदेशी सैनिकों की वापसी ने इसके इतिहास में एक नया अध्याय खोल दिया, लेकिन अफगानिस्तान अब भी कई दुरूह चुनौतियों का सामना कर रहा है और उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासतौर पर हमारे क्षेत्र के देशों के सहयोग की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हम एससीओ सदस्य देशों को समन्वय बढ़ाने, एससीओ-अफगानिस्तान संपर्क समूह जैसे मंचों का पूरा उपयोग करने और अफगानिस्तान में सुगमता से परिवर्तन लाने की जरूरत है। हमें अफगानिस्तान को व्यापक आधार वाला एवं समावेशी राजनीतिक ढांचा अपनाने, उदार घरेलू एवं विदेश नीतियां अपनाने, आतंकवाद के सभी स्वरूपों से दृढ़ता से लड़ने तथा शांति, स्थिरता व विकास के पथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है।